The politics of India works within the framework of the country's constitution. India is a federal parliamentary democratic republic in which the President of India is the head of state and the Prime Minister of India is the head of government. In this blog you will find the latest problems faced by politics of our country and off course the issues of current. And some other juicy contents.
Wednesday, November 20, 2019
Thursday, November 7, 2019
जनसंख्या - भारत की बढ़ती आबादी
जनसँख्या ,यह शब्द सुनते ही आँखों के सामने चलते फिरते करोड़ो लोगों की भीड़ की तस्वीर सामने आ जाती है खासकर भारत में ,क्योकि हम लोग भारत में रहते हैं तो तस्वीर भी भारत की ही दिखाई देगी। इन दिनों भारत में बढ़ती हुई जनसख्याँ को लेकर बहुत सारे बुद्धिजीवियों। राजनेताओं ,पत्रकारों और आम नागरिकों के वक्तव्य आ रहे हैं ,क्योंकि देश के हालात ही कुछ ऐसे हैं। किसी भी देश की सरकार का ये पहला कर्तव्य होता है की वो अपने नागरिकों की प्राथमिक जरूरतों के साथ -साथ उनके सम्पूर्ण विकास और उत्थान के लिए सर्वोपरि कदम उठाये। किन्तु जनसँख्या की दृस्टि से भारत आज विश्व में पहले नम्बर पर आने से सिर्फ दो कदम दूर है तो इन परिस्तिथियों में सीमित संसाधनों के साथ ये कैसे संभव है की सभी की जरूरतें पूरी हो जाये तो कौन से कदम उठाये जाये की इस बढ़ती हुई आबादी पर रोक लग सके।
जनसख्याँ के आँकड़े
अब से ५० साल पहले दुनिया की आबादी ३ अरब ५५ करोड़ थी और आज ये आँकड़ा ७ अरब ७ करोड़ है आज भारत की जनसँख्या लगभग १ अरब ३७ करोड़ है और चीन की आबादी १ अरब ३९ करोड़ है। १२ साल बाद हम चीन से ८%ज्यादा होंगे। २०५० में हमारी जनसँख्या २५%ज्यादा हो जाएगी। इस समय देश में १५ साल से कम उम्र की आबादी २८ %है। ये आँकड़े PRB {population Refration Bueroau}की वर्ल्ड रिपोर्ट से लिए गए हैं।भारत के पास विश्व के पानी का ४%है तथा भूमि का २. ४%है ,परन्तु भारत की आबादी विश्व की १७. ९९%है। तो इसी से अंदाज लगाया जा सकता है की स्तिथि कितनी चिंताजनक है।
फैमिली प्लानिंग पॉलिसी
हिन्दुस्तान उन देशों में शामिल है जिन्होंने सबसे पहले फैमिली प्लानिंग पॉलिसी बनाई ,परन्तु आज ऐसे हालात हैं कि हम सोचने पर मजबूर हैं कि कौन -कौन से कारण रहे की हम जनसँख्या कंट्रोल नहीं कर पाए। इसी चिंता के मद्देनजर मध्य प्रदेश के सांसद उदय प्रताप सिंह ,{होंसंगाबाद }ने एक एन जी ओ के साथ एक रिपोर्ट तैयार की है और उसे १२५ सांसदों के साथ राष्ट्रपति को सौंपा है। उदय प्रतापसिंह ने इस मुद्दे को संसद में भी बड़ी गंभीरता के साथ उठाया है। उनके इस ड्राफ्ट के अनुसार सब्सिडी हटाना ,सरकारी नौकरी न देना ,वोट का अधिकार छीन लेना जैसे कुछ उपाय सुझाये गये हैं।
बढ़ती आबादी से नुकसान
जनसख्याँ कितनी बड़ी समस्या है इसका अंदाजा इस बात से लगाइये की संसाधन ख़त्म होते जा रहे हैं बेरोजगारी बढ़ती जा रही है पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है इसका नतीजा हमारी नदियों की हालत देखकर ,स्वास्थ्य सेवाओं में मारामारी ,एक पद पर १० हजार आवेदन,सड़को पर ट्रैफिक जाम की हालत देखकर लगाया जा सकता है। देश में ९.७ %लोगों को पानी नहीं मिल रहा है।प्रदूषण बढ़ता जा रहा है ,देश के अंदर अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।
विवादास्पद बयान
जनसंख्या दिवस के मौके पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एक विवादास्पद बयान दिया कि "१९४७ की तरह भारत सांस्कृतिक विभाजन की तरफ बढ़ रहा है ,सांस्कृतिक समरसता और संतुलन बिगड़ रहा है।" जिस पर खूब राजनीति हुई। ऐसा ही बयान कुछ वक्त पहले कि हिन्दुओं को १० -१० बच्चे पैदा करने चाहिए क्योकि हिन्दुओं की जनसँख्या लगातार कम हो रही है परन्तु नेताओं को ऐसे बयानबाजी से बचना चाहिए इसी तरह ओवैसी और आजम खान जैसे मुस्लिम नेता भी ऊट -पटांग गैरजिम्मेदाराना बयान जारी करते रहते हैं।
धर्म की आड़ में जनसँख्या को बढ़ावा
जनसँख्या को लेकर हिन्दू -मुस्लिम की राजनीति शुरू हो जाती है क्योकि मुस्लिम इसे अल्लाह की देन कहकर बच्चों की संख्या को सीमित नहीं करना चाहते लेकिन जनसंख्या नियन्त्रण के लिए ये कदम उठाना बहुत ही जरूरी है जनसँख्या नियंत्रण के लिए लोगों का पढ़ा -लिखा होना जरूरी है ,इससे वे यह बात अच्छी तरह समझ पाएंगे कि उनके विकास और तरक्की के लिए बच्चों का सीमित संख्या में होना कितना जरूरी है जनसँख्या नियंत्रण बहुत जरूरी है क्योंकि ये देश शरीयत से नहीं सविधान से चलेगा।
सख्त कानून की दरकार
सरकार को जनसँख्या नियंत्रण के लिए एक सख्त कानून लाना चाहिए जिससे की इस तेज रफ़्तार से बढ़ती आबादी पर रोक लगायी जा सके। और देश के अंदर इसे समान रूप से लागू करना चाहिए। इसमें किसी भी जाति और धर्म को रत्ती भर भी छूट की कोई गुंजाईस नहीं है क्योंकि सविधान के तहत नागरिकों पर समान नियम और कानून लागू होते हैं। वैसे तो इसमें पढ़े -लिखे और समझदार लोग खुद ही सहयोग करेंगे परन्तु यदि कोई ये नियम न माने तो उनके ऊपर कठोर कार्यवाही और सजा का इंतजाम किया जाय -जैसे जो भी दो {२ }बच्चों से ज्यादा पैदा करे उनकी सभी सरकारी सुविधाएं जैसे सब्सिडी ,पेंशन आगे चलकर ,सरकारी नौकरी ,बिजलीपानी के डबल बिल वोट का अधिकार आदि न देना।
पडोसी से सीख
भारत को इस मामले में अपने पड़ोसी बांग्लादेश से सबक लेना चाहिए कि कितनी समझदारी से उसने अपनी बढ़ती आबादी को नियंत्रित किया है। इस क्षेत्र में बांग्लादेश हमसे बहुत आगे है बांग्लादेश ने सिर्फ कानून बनाकर ही ये उपलब्धि हासिल नहीं की बल्कि उससे पहले जागरूकता अभियान चलाये ,गाँव -गाँव लोगों को समझाया ,अपनी नई पीढ़ी को परिवार नियोजन के साधन उपलब्ध कराये ,शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर दिया। भारत भी ये सभी नियम अपनाकर अपनी बढ़ती आबादी को नियंत्रित कर सकता है। यहॉँ एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है की बांग्लादेश एक मुस्लिम राष्ट्र है लेकिन फिर भी लोगों ने अपनी और अपने देश के बेहतर विकास और अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए सरकार का पूरा सहयोग किया है।
कदम जो उठाने होंगे
देश के ११ राज्यों में हम दो हमारे दो का नियम पहले में से ही लागू है और अभी हाल ही में असम सरकार ने जनसंख्या को लेकर एक कानून पारित किया है की जो भी अगले साल से दो बच्चों से ज्यादा पैदा करेगा उसकी सारी सरकारी सुविधाएं छीन ली जाएँगी ऐसा करने वाला असम देश का पहला राज्य बन गया है।लोगों को अपनी वर्तमान पीढ़ी को विवाह के तुरन्त बाद कुछ इस तरह की बातें कि "खुशखबरी कब सुना रहे हो "'कहने से भी बचना होगा। या फिर लड़के के बाद लड़की या लड़की के बाद लड़का ,एक और बच्चा के जन्म की सलाह देने से भी बचना होगा,क्योंकि हमारे देश में परिवारों पर कुछ इस तरह के सामाजिक दबाब भी जनसँख्या वृद्धि में सहायक हैं।
जनसँख्या वृदि की वजह से आज देश में पर्यावरण प्रदूषण ,ग्लोवल वार्मिंग आर्थिक और सामाजिक शोषण ,गरीबी अपराध ,लोगों की हिंसक प्रवत्ति ,अवसाद ग्रस्त होना ,आतंकवादी बनना आदि सभी समस्याओं की जड़ जनसँख्या वृद्धि है। इसी वजह से देश अपना बहतर तरीके से विकास नहीं कर पाता ,हमे अपने संसाधनों का ज्यादा मात्रा में उपयोग करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप धीरे -धीरे हमारे उपलब्ध संसाधन समाप्त होते चले जायेंगे ,तो क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को यहाँ एक अंधकारमय भविष्य देकर जायेंगे ऐसे में अगर भारत को एक शक्तिशाली और विकसित राष्ट्र बनना है तो जनसँख्या पर सख्ती से लगाम लगानी ही पड़ेगी। ।
(यह लेखिका के अपने विचार है)
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