Wednesday, November 20, 2019

राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला आने के बाद की स्थिति

फैसले की उत्सुकता 

 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ९ नवम्बर २०१९ की सुबह लगभग १०:३० पर जब राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद पर पाँच जजों की पीठ का सर्वसम्मति से लिया गया लिखित फैसला पढ़ना शुरू किया तो सारे देश की निगाहें अपने -अपने टीवी स्क्रीन पर ही लगी हुई थी। अयोध्या फैसले को लेकर पूरे देश में जो उत्सुकता थी की आखिर क्या फैसलाआएगा,हालाँकि इस बात की भीनी -भीनी खुशबू लोगों को भी और राजनैतिक गलियारों में भी पहले से ही आ रही थी की फैसला हिंदुओं के पक्ष्य में ही आने वाला है। परन्तु फिर भी लोग सुनने के लिए आतुर थे। जिस तरह फैसले से पहले ही पूरे देश के लोगों से सभी धार्मिक गुरुओं ,मौलवियों या फिर प्रधानमंत्री ने शान्ति और  सौहार्द बनाये रखने की अपील की गयी थी ,उससे अब लगने लगा है की एक नए भारत का उदय हो रहा है और लोग समझने लगे हैं की किसी एक मतभेद को लेकर सब कुछ लड़ाई और दंगे की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता। 

विवाद कितना पुराना 

 

विवाद की जड़ उतनी ही पुरानी है जितना भारत का विचार ,अयोध्या में राम का जन्म हुआ इस बात पर कभी विवाद नहीं रहा परन्तु वहीं राम का जन्म हुआ है जिस जगह पर विवाद है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा था की मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गयी। १८५७ के बाद मुसलमान वहाँ नमाज पढ़ते थे ,लेकिन हिन्दू वहाँ उससे पहले सदियों से पूजा करते थे। अयोध्या विवाद की नींव ५०० साल पुरानी है और अब जब फैसले के बाद सभी ने जिस शांति और संयम का परिचय दिया है वो काबिले तारीफ है।हालाँकि ओवैसी जैसे कुछ लोग देश में मुसलमानों को भड़काकर दंगा करवाना चाहते हैं और अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकना चाहते है।  ६ दिसम्बर १९९२ से ६ साल पहले २८ जनवरी १९८६ को फैजाबाद के जिला जज कृष्ण मोहन पांडेय ने ताला खोलने का  फैसला सुनाया उसकी प्रेरणा उन्हें एक बंदर से मिली ,ये बात उन्होंने अपनी आत्मकथा  "युद्ध में अयोध्या " में कही है।

शिलालेखों से मिले सबूत 

 

श्री राम जन्मभूमि में १९७७ में पहली बार खुदाई हुई और दूसरी बार २००३ में.पहली बार मस्जिद थी लेकिन दूसरी बार मस्जिद ढा दी गयी थी। खुदाई से बहुत से प्रमाण मिले जिससे ये साफ था की जहाँ आज मस्जिद है वहाँ पहले कोई हिन्दू धार्मिक स्थल मौजूद था ,लेकिन मस्जिद टूटने के बाद मस्जिद की दीवार के अंदर से भी शिलालेख निकले जिनसे ये भी साबित हो गया की मस्जिद किसी मन्दिर के पिलर पर बनायी गयी है। ओरंगजेब की पोती की एक चिट्ठी से भी साफ पता चल जाता है की मन्दिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया।

सभी पक्षों ने स्वागत किया  

 

फैसले से दूसरी बात जो सामने आयी वो है की सरकार ५ एकड़ जमीन मुसलमानों को अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए दे। इस फैसले का सभी मुस्लिम पक्षों ने भी स्वागत किया है सभी का मानना है की एक तरफ हिन्दुओं का भव्य राम मंदिर बने और साथ ही दूसरी और एक भव्य मस्जिद का निर्माण किया जाय। हिंदू मस्जिद में अपना सहयोग करें और मुस्लिम मंदिर में पूर्ण सहयोग करें ,जिससे देश और दुनिया में एक नई मिसाल कायम हो। किन्तु क्या ये सम्भव है की ये दोंनो एक दूसरे को मंदिर और मस्जिद बनाने में मदद करेंगे।यहाँ मै एक बात का जिक्र जरूर करना चाहूँगी की हिन्दू -मुस्लिम एक -दूसरे का सहयोग करें या न करें परन्तु इन दोनों का केस लड़ने वाले वकील जरूर आपस में अच्छे दोस्त बन चुके हैं।  

फैसले के खिलाफ 

 

अभी  एक दूसरे के सहयोग की बात चल ही रही थी की ओवैसी जैसे मुसलमानों के ठेकेदार अपनी ढपली अपना राग लेकर हाजिर हो गए ,जब सं २०११ में दोनों पक्षों ने ही सुप्रीम कोर्ट में ये अपील की थी कि राय जो भी फैसला आएगा वो सभी को मंजूर होगा तो अब ओवैसी जैसे लोग उल्टे -सीधे बयान जैसे फैसला हमें मंजूर है पर इन्फेलेबल है या मेरी मस्जिद मुझे वापिस चाहिए क्यों जारी कर रहे हैं। ऐसे लोग ही सीधे -सादे लोगों को भड़काकर देश को दंगे की आग में झोंक देते हैं और फिर उस आग पर अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकते हैं। मेरी समझ में ये नहीं आता की ओवैसी ने मुसलमानों के लिए ऐसा क्या किया है जो पूरे हिंदुस्तान के मुसलमानों को क्या करना है उसकी जिम्मेदारी ओवैसी ने ही ले रखी है। 

जमीन लेने पर विवाद 

 

अब बात आती है की क्या मुसलमान इस ५ एकड़ जमीन को स्वीकार करेंगे ,या नहीं। पूरे हिंदुस्तान में इतनी बड़ी जमीन पर कोई मस्जिद नहीं है ,लेकिन क्या इस जमीन को खैरात समझकर छोड़ देना ठीक होगा। मेरी राय में अगर मुसलमानों ने जमीन छोड़ने का फैसला लिया तो वे नुकसान में ही रहेंगे क्योंकि बाबरी मस्जिद में तो वैसे भी सदियों से नमाज नहीं पढ़ी जा रही थी तो फिर अब भी क्या बदला है।हिंदुस्तान में हमने मुसलमानों को सड़कों पर नवाज पढ़ते हुए देखा है ,लेकिन क्या कभी हिंदुओं को सड़क के बीच बैठकर भगवान की पूजा करते देखा है ? मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दोबारा कोर्ट में वही मस्जिद  की जगह चाहिये को लेकर अर्जी दायर करने का फैसला किया है। यहाँ सवाल ये भी है की क्या उनको ये अर्जी दायर करने का हक है भी या नहीं क्योंकि दोबारा अर्जी वही दाखिल कर सकते हैं जो फैसले में पक्षकार रहे हों।

मंदिर की राह में रोड़ा 

 

अब समुदाय विशेष की राजनीति शुरू हो गयी है और राम मंदिर को लटकाने भटकाने की कोशिश शुरू हो गयी है। मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड रिव्यू पर जा रहा है तो उन्होंने पहले अदालत का फैसला मानने की बात क्यों कही थी। जब कई पक्षकारों को कोई एतराज नहीं है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को क्या दिक़्क़त है। इक़बाल अंसारी ,जो इस केस में पहले दिन से शामिल थे अब उन्होंने भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से किनारा कर लिया है। इतने सालों से चला आ रहा विवाद शांतिपूर्वक ख़त्म होने जा रहा था किंतु कुछ लोगों को ये रास नहीं आ रहा क्योंकि इसके सहारे ही वे लोग अपनी राजनीति जारी रखना चाहते हैं। 

 

(धन्यवाद्!)

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