Wednesday, November 20, 2019

राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला आने के बाद की स्थिति

फैसले की उत्सुकता 

 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ९ नवम्बर २०१९ की सुबह लगभग १०:३० पर जब राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद पर पाँच जजों की पीठ का सर्वसम्मति से लिया गया लिखित फैसला पढ़ना शुरू किया तो सारे देश की निगाहें अपने -अपने टीवी स्क्रीन पर ही लगी हुई थी। अयोध्या फैसले को लेकर पूरे देश में जो उत्सुकता थी की आखिर क्या फैसलाआएगा,हालाँकि इस बात की भीनी -भीनी खुशबू लोगों को भी और राजनैतिक गलियारों में भी पहले से ही आ रही थी की फैसला हिंदुओं के पक्ष्य में ही आने वाला है। परन्तु फिर भी लोग सुनने के लिए आतुर थे। जिस तरह फैसले से पहले ही पूरे देश के लोगों से सभी धार्मिक गुरुओं ,मौलवियों या फिर प्रधानमंत्री ने शान्ति और  सौहार्द बनाये रखने की अपील की गयी थी ,उससे अब लगने लगा है की एक नए भारत का उदय हो रहा है और लोग समझने लगे हैं की किसी एक मतभेद को लेकर सब कुछ लड़ाई और दंगे की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता। 

विवाद कितना पुराना 

 

विवाद की जड़ उतनी ही पुरानी है जितना भारत का विचार ,अयोध्या में राम का जन्म हुआ इस बात पर कभी विवाद नहीं रहा परन्तु वहीं राम का जन्म हुआ है जिस जगह पर विवाद है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा था की मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गयी। १८५७ के बाद मुसलमान वहाँ नमाज पढ़ते थे ,लेकिन हिन्दू वहाँ उससे पहले सदियों से पूजा करते थे। अयोध्या विवाद की नींव ५०० साल पुरानी है और अब जब फैसले के बाद सभी ने जिस शांति और संयम का परिचय दिया है वो काबिले तारीफ है।हालाँकि ओवैसी जैसे कुछ लोग देश में मुसलमानों को भड़काकर दंगा करवाना चाहते हैं और अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकना चाहते है।  ६ दिसम्बर १९९२ से ६ साल पहले २८ जनवरी १९८६ को फैजाबाद के जिला जज कृष्ण मोहन पांडेय ने ताला खोलने का  फैसला सुनाया उसकी प्रेरणा उन्हें एक बंदर से मिली ,ये बात उन्होंने अपनी आत्मकथा  "युद्ध में अयोध्या " में कही है।

शिलालेखों से मिले सबूत 

 

श्री राम जन्मभूमि में १९७७ में पहली बार खुदाई हुई और दूसरी बार २००३ में.पहली बार मस्जिद थी लेकिन दूसरी बार मस्जिद ढा दी गयी थी। खुदाई से बहुत से प्रमाण मिले जिससे ये साफ था की जहाँ आज मस्जिद है वहाँ पहले कोई हिन्दू धार्मिक स्थल मौजूद था ,लेकिन मस्जिद टूटने के बाद मस्जिद की दीवार के अंदर से भी शिलालेख निकले जिनसे ये भी साबित हो गया की मस्जिद किसी मन्दिर के पिलर पर बनायी गयी है। ओरंगजेब की पोती की एक चिट्ठी से भी साफ पता चल जाता है की मन्दिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया।

सभी पक्षों ने स्वागत किया  

 

फैसले से दूसरी बात जो सामने आयी वो है की सरकार ५ एकड़ जमीन मुसलमानों को अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए दे। इस फैसले का सभी मुस्लिम पक्षों ने भी स्वागत किया है सभी का मानना है की एक तरफ हिन्दुओं का भव्य राम मंदिर बने और साथ ही दूसरी और एक भव्य मस्जिद का निर्माण किया जाय। हिंदू मस्जिद में अपना सहयोग करें और मुस्लिम मंदिर में पूर्ण सहयोग करें ,जिससे देश और दुनिया में एक नई मिसाल कायम हो। किन्तु क्या ये सम्भव है की ये दोंनो एक दूसरे को मंदिर और मस्जिद बनाने में मदद करेंगे।यहाँ मै एक बात का जिक्र जरूर करना चाहूँगी की हिन्दू -मुस्लिम एक -दूसरे का सहयोग करें या न करें परन्तु इन दोनों का केस लड़ने वाले वकील जरूर आपस में अच्छे दोस्त बन चुके हैं।  

फैसले के खिलाफ 

 

अभी  एक दूसरे के सहयोग की बात चल ही रही थी की ओवैसी जैसे मुसलमानों के ठेकेदार अपनी ढपली अपना राग लेकर हाजिर हो गए ,जब सं २०११ में दोनों पक्षों ने ही सुप्रीम कोर्ट में ये अपील की थी कि राय जो भी फैसला आएगा वो सभी को मंजूर होगा तो अब ओवैसी जैसे लोग उल्टे -सीधे बयान जैसे फैसला हमें मंजूर है पर इन्फेलेबल है या मेरी मस्जिद मुझे वापिस चाहिए क्यों जारी कर रहे हैं। ऐसे लोग ही सीधे -सादे लोगों को भड़काकर देश को दंगे की आग में झोंक देते हैं और फिर उस आग पर अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकते हैं। मेरी समझ में ये नहीं आता की ओवैसी ने मुसलमानों के लिए ऐसा क्या किया है जो पूरे हिंदुस्तान के मुसलमानों को क्या करना है उसकी जिम्मेदारी ओवैसी ने ही ले रखी है। 

जमीन लेने पर विवाद 

 

अब बात आती है की क्या मुसलमान इस ५ एकड़ जमीन को स्वीकार करेंगे ,या नहीं। पूरे हिंदुस्तान में इतनी बड़ी जमीन पर कोई मस्जिद नहीं है ,लेकिन क्या इस जमीन को खैरात समझकर छोड़ देना ठीक होगा। मेरी राय में अगर मुसलमानों ने जमीन छोड़ने का फैसला लिया तो वे नुकसान में ही रहेंगे क्योंकि बाबरी मस्जिद में तो वैसे भी सदियों से नमाज नहीं पढ़ी जा रही थी तो फिर अब भी क्या बदला है।हिंदुस्तान में हमने मुसलमानों को सड़कों पर नवाज पढ़ते हुए देखा है ,लेकिन क्या कभी हिंदुओं को सड़क के बीच बैठकर भगवान की पूजा करते देखा है ? मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दोबारा कोर्ट में वही मस्जिद  की जगह चाहिये को लेकर अर्जी दायर करने का फैसला किया है। यहाँ सवाल ये भी है की क्या उनको ये अर्जी दायर करने का हक है भी या नहीं क्योंकि दोबारा अर्जी वही दाखिल कर सकते हैं जो फैसले में पक्षकार रहे हों।

मंदिर की राह में रोड़ा 

 

अब समुदाय विशेष की राजनीति शुरू हो गयी है और राम मंदिर को लटकाने भटकाने की कोशिश शुरू हो गयी है। मुस्लिम परसनल लॉ बोर्ड रिव्यू पर जा रहा है तो उन्होंने पहले अदालत का फैसला मानने की बात क्यों कही थी। जब कई पक्षकारों को कोई एतराज नहीं है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को क्या दिक़्क़त है। इक़बाल अंसारी ,जो इस केस में पहले दिन से शामिल थे अब उन्होंने भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से किनारा कर लिया है। इतने सालों से चला आ रहा विवाद शांतिपूर्वक ख़त्म होने जा रहा था किंतु कुछ लोगों को ये रास नहीं आ रहा क्योंकि इसके सहारे ही वे लोग अपनी राजनीति जारी रखना चाहते हैं। 

 

(धन्यवाद्!)

Thursday, November 7, 2019

जनसंख्या - भारत की बढ़ती आबादी

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जनसँख्या ,यह शब्द सुनते ही आँखों के सामने चलते फिरते करोड़ो लोगों की भीड़ की तस्वीर सामने आ जाती है खासकर भारत में ,क्योकि हम लोग भारत में रहते हैं तो तस्वीर भी भारत की ही दिखाई देगी। इन दिनों भारत में बढ़ती हुई जनसख्याँ को लेकर बहुत सारे बुद्धिजीवियों। राजनेताओं ,पत्रकारों और आम नागरिकों के वक्तव्य आ रहे हैं ,क्योंकि देश के हालात ही कुछ ऐसे हैं। किसी भी देश की सरकार का ये पहला कर्तव्य होता है की वो अपने नागरिकों की प्राथमिक जरूरतों के साथ -साथ उनके सम्पूर्ण विकास और उत्थान के लिए सर्वोपरि कदम उठाये। किन्तु जनसँख्या की दृस्टि से भारत आज विश्व में पहले नम्बर पर आने से सिर्फ दो कदम दूर है तो इन परिस्तिथियों में सीमित संसाधनों के साथ ये कैसे संभव है की सभी की जरूरतें पूरी हो जाये तो कौन से कदम उठाये जाये की इस बढ़ती हुई आबादी पर रोक लग सके। 


जनसख्याँ के आँकड़े 

अब से ५० साल पहले दुनिया की आबादी ३ अरब ५५ करोड़ थी और आज ये आँकड़ा ७ अरब ७ करोड़ है आज भारत की जनसँख्या लगभग १ अरब ३७  करोड़ है और चीन की आबादी १ अरब ३९ करोड़ है। १२ साल बाद हम चीन से ८%ज्यादा होंगे। २०५० में हमारी जनसँख्या २५%ज्यादा हो जाएगी। इस समय देश में १५ साल से कम उम्र की आबादी २८ %है। ये आँकड़े PRB {population Refration Bueroau}की वर्ल्ड रिपोर्ट से लिए गए हैं।भारत के पास विश्व के पानी का ४%है तथा भूमि का २. ४%है ,परन्तु भारत की आबादी विश्व की १७. ९९%है। तो इसी से अंदाज लगाया जा सकता है की स्तिथि कितनी चिंताजनक है। 

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 फैमिली प्लानिंग पॉलिसी

हिन्दुस्तान उन देशों में शामिल है जिन्होंने सबसे पहले फैमिली प्लानिंग पॉलिसी बनाई ,परन्तु आज ऐसे हालात हैं कि हम सोचने पर मजबूर हैं कि कौन -कौन से कारण रहे की हम जनसँख्या कंट्रोल नहीं कर पाए। इसी चिंता के मद्देनजर मध्य प्रदेश के सांसद उदय प्रताप सिंह ,{होंसंगाबाद }ने एक एन जी ओ के साथ एक रिपोर्ट तैयार की है और उसे १२५ सांसदों के साथ राष्ट्रपति को सौंपा है। उदय प्रतापसिंह ने इस मुद्दे को संसद में भी बड़ी गंभीरता के साथ उठाया है। उनके इस ड्राफ्ट के अनुसार सब्सिडी हटाना ,सरकारी नौकरी न देना ,वोट का अधिकार छीन लेना जैसे कुछ उपाय सुझाये गये हैं।

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बढ़ती आबादी से नुकसान 

जनसख्याँ कितनी बड़ी समस्या है इसका अंदाजा इस बात से लगाइये की संसाधन ख़त्म होते जा रहे हैं बेरोजगारी बढ़ती जा रही है पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है इसका नतीजा हमारी नदियों की हालत देखकर ,स्वास्थ्य सेवाओं में मारामारी ,एक पद पर १० हजार आवेदन,सड़को पर ट्रैफिक जाम की हालत देखकर लगाया जा सकता है। देश में ९.७ %लोगों को पानी नहीं मिल रहा है।प्रदूषण बढ़ता जा रहा है ,देश के अंदर अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। 

 

विवादास्पद बयान 

जनसंख्या दिवस के मौके पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एक विवादास्पद बयान दिया कि "१९४७ की तरह भारत सांस्कृतिक विभाजन की तरफ बढ़ रहा है ,सांस्कृतिक समरसता और संतुलन बिगड़ रहा है।" जिस पर खूब राजनीति हुई। ऐसा ही बयान कुछ वक्त पहले कि हिन्दुओं को १० -१० बच्चे पैदा करने चाहिए क्योकि हिन्दुओं की जनसँख्या लगातार कम हो रही है परन्तु नेताओं को ऐसे बयानबाजी से बचना चाहिए इसी तरह ओवैसी और आजम खान जैसे मुस्लिम नेता भी ऊट -पटांग गैरजिम्मेदाराना बयान जारी करते रहते हैं। 

 

धर्म की आड़ में जनसँख्या को बढ़ावा 

जनसँख्या को लेकर हिन्दू -मुस्लिम की राजनीति शुरू हो जाती है क्योकि मुस्लिम इसे अल्लाह की देन कहकर बच्चों की संख्या को सीमित नहीं करना चाहते लेकिन जनसंख्या नियन्त्रण के लिए ये कदम उठाना बहुत ही जरूरी है जनसँख्या नियंत्रण के लिए लोगों का पढ़ा -लिखा होना जरूरी है ,इससे वे यह बात अच्छी तरह समझ पाएंगे कि उनके विकास और तरक्की के लिए बच्चों का सीमित संख्या में होना कितना जरूरी है जनसँख्या नियंत्रण बहुत जरूरी है क्योंकि ये देश शरीयत से नहीं सविधान से चलेगा। 

सख्त कानून की दरकार 

सरकार को जनसँख्या नियंत्रण के लिए एक सख्त कानून लाना चाहिए जिससे की इस तेज रफ़्तार से बढ़ती आबादी पर रोक लगायी जा सके। और देश के अंदर इसे समान रूप से लागू करना चाहिए। इसमें किसी भी जाति और धर्म को रत्ती भर भी छूट की कोई गुंजाईस नहीं है क्योंकि सविधान के तहत नागरिकों पर समान नियम और कानून लागू होते हैं। वैसे तो इसमें पढ़े -लिखे और समझदार लोग खुद ही सहयोग करेंगे परन्तु यदि कोई ये नियम न माने तो उनके ऊपर कठोर कार्यवाही और सजा का इंतजाम किया जाय -जैसे जो भी दो {२ }बच्चों से ज्यादा पैदा करे उनकी सभी सरकारी सुविधाएं जैसे सब्सिडी ,पेंशन आगे चलकर ,सरकारी नौकरी ,बिजलीपानी के डबल बिल वोट का अधिकार आदि न देना। 

 

पडोसी से सीख

भारत को इस मामले में अपने पड़ोसी बांग्लादेश से सबक लेना चाहिए कि कितनी समझदारी से उसने अपनी बढ़ती आबादी को नियंत्रित किया है। इस क्षेत्र में बांग्लादेश हमसे बहुत आगे है बांग्लादेश ने सिर्फ कानून बनाकर ही ये उपलब्धि हासिल नहीं की बल्कि उससे पहले जागरूकता अभियान चलाये ,गाँव -गाँव लोगों को समझाया ,अपनी नई पीढ़ी को परिवार नियोजन के साधन उपलब्ध कराये ,शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर दिया। भारत भी ये सभी नियम अपनाकर अपनी बढ़ती आबादी को नियंत्रित कर सकता है। यहॉँ एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है की बांग्लादेश एक मुस्लिम राष्ट्र है लेकिन फिर भी लोगों ने अपनी और अपने देश के बेहतर विकास और अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए सरकार का पूरा सहयोग किया है। 

 कदम जो उठाने होंगे 

देश के ११ राज्यों में हम दो हमारे दो का नियम पहले में से ही लागू है और अभी हाल ही में असम सरकार ने जनसंख्या को लेकर एक कानून पारित किया है की जो भी अगले साल से दो बच्चों से ज्यादा पैदा करेगा उसकी सारी सरकारी सुविधाएं छीन ली जाएँगी ऐसा करने वाला असम देश का पहला राज्य बन गया है।लोगों को अपनी वर्तमान पीढ़ी को विवाह के तुरन्त बाद कुछ इस तरह की बातें कि "खुशखबरी कब सुना रहे हो "'कहने से भी बचना होगा। या फिर लड़के के बाद लड़की या लड़की के बाद लड़का ,एक और बच्चा के जन्म की सलाह देने से भी बचना होगा,क्योंकि हमारे देश में परिवारों पर कुछ इस तरह के सामाजिक दबाब भी जनसँख्या वृद्धि में सहायक हैं।  

जनसँख्या वृदि की वजह से आज देश में पर्यावरण प्रदूषण ,ग्लोवल वार्मिंग आर्थिक और सामाजिक शोषण ,गरीबी अपराध ,लोगों की हिंसक प्रवत्ति ,अवसाद ग्रस्त होना ,आतंकवादी बनना आदि सभी समस्याओं की जड़ जनसँख्या वृद्धि है। इसी वजह से देश अपना बहतर तरीके से विकास नहीं कर  पाता ,हमे अपने संसाधनों का ज्यादा मात्रा में उपयोग करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप धीरे -धीरे हमारे उपलब्ध संसाधन समाप्त होते चले जायेंगे ,तो क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को यहाँ एक अंधकारमय भविष्य देकर जायेंगे ऐसे में अगर भारत को एक शक्तिशाली और विकसित राष्ट्र बनना है तो जनसँख्या पर सख्ती से लगाम लगानी ही पड़ेगी। । 

(यह लेखिका के अपने विचार है) 

 
 

  

 

Monday, October 28, 2019

हिंदुत्व पर प्रहार और कीमत

हिंदू हिंदुस्तान में रहकर भी इतना असहाय और निरीह क्यों हो गया है ?आखिर क्या कमियाँ हैं जिसके कारण ये सब हो रहा है ?कमलेश तिवारी हत्याकांड एक बहुत ही बड़े षड्यंत्र की दस्तक दे रहा है,जो हिंदुस्तान में हिन्दुओं के ही खिलाफ रचा जा रहा है.आखिर हिन्दुओं के साथ ऐसी घटनाएँ क्यों घट रही हैं देश के अंदर ऐसी कौन सी विघटनकारी शक्तियाँ हैं जो हिंदुओं के खिलाफ काम कर रही हैं। जमीयत ए उलेमा हिन्द के प्रवक्ता ने कहा ,जमीयत कमलेश तिवारी के हत्त्यारों को मुफ़्त में कानूनी मदद देगी और उनका सारा खर्च उठाएगी। यह खबर उन लोगों के मुँह पर तमाचा है जो भारत में गंगा -जमुनी तहजीब और धर्मनिरपेक्षता की बड़ी -बड़ी बातें करते हैं किसी संस्था द्वारा इस तरह की मदद हिदुस्तान में इस्लामिक कटटरपंथ को बढ़ावा देना है।  सवाल यहाँ ये भी है की क्यो हिन्दू खुद अपने जात -पात ,ऊँच -नीच की विचारधारा में फँसा पड़ा है।

  

भारत में ऐसी हत्या अभी तक नहीं हुई थी.एक राजनैतिक नेता अकबरुद्दीन ने हिन्दुओं का नरसंहार करने की खुली धमकी दी लेकिन फिर से किसी ने कोई प्रतिकिर्या नहीं दी । जब आजम खान ने राम और सीता पर टिप्पणी की ,अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर चल रही बहस पर कॉंग्रेश ने तो खुद हिन्दू होकर भगवान राम को काल्पनिक करार दे दिया। ममता बनर्जी बंगाल में दुर्गा पूजा पर रोड़े अटकाती है ,तो कहने का मतलब ये है की आखिर क्या ये वोट बैंक की राजनीति हिंदुस्तान में हिन्दुओं को ही अल्पसंखयक बना कर दम लेगी।

 

हिन्दू कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवन पद्यति है,जो ५००० से भी ज्यादा वर्षो से निरंतर चली आ रही है जो अपनी प्राचीनता आध्यात्मिकता ,सहिषुणता एवं विविधता में एकता के लिए जानी जाती है सनातन धर्म परम्परा प्राचीन काल से अपनी उदारवादिता और वसुधैव कुटुंबकम की भावना के लिए वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध है।

 

अब से २५ -३० साल पहले कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ उसे पूरे देश ने चुपचाप बर्दाश्त कर लियाकश्मीरी हिन्दू अभी भी शरणार्थी हैं  देश में लगभग ७०%आबादी हिन्दू है ,इस देश में कोई भी मुसलमान चाहे वो कोई नेता हो ,फिल्मी कलाकार हो,या फतवे जारी करने वाले मौलवी हो या कोई आम नागरिक हो ,वे चाहे कुछ भी किसी हिन्दू देवी -देवता के बारे में या किसी खास परिस्तिथि या किसी व्यक्ति विशेष के बारे में अभद्र टिप्पणी करे उनके लिए कोई सजा नहीं है, लेकिन अगर कोई हिन्दू इनके मजहब के बारे में कोई टिप्पणी कर दे तो हत्त्यारे सूरत से आएंगे। हिंदुओं को असहनशील कहा जाने लगेगा। 

 

सवाल यह है की इतने बड़े देश में जहाँ हिंदू बहुसंख्यक हैं और उनकी ही पार्टी मानी जाने वाली भाजपा की सरकार है वहाँ हिन्दुओ की ही सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। काफी वक्त से एक ट्रेंड चला आ रहा है कि किसी भी दूसरी जाति जैसे मुस्लिम या कोई अन्य के सन्दर्भ में कोई भी मामला आते ही कुछ नेता वहाँ उस परिवार के पास झूटी सहानुभूति प्रदर्शित करने पहुँच जाते हैं लेकिन कमलेश तिवारी की हत्या पर न तो राहुल और पिरयंका गाँधी वहाँ सहानुभूति प्रदर्शित करने गए  ,न किसी ने कैंडल मार्च निकाले इसे आप किस दृष्टि से देखेंगे। ये भी एक विचारणीय विषय है 

 

नरेंद्र मोदी की सरकार [२०१४ ]आने से अभी तक तो ये माना जा रहा था की अगर केंद्र में भाजपा की सरकार आ गयी तो तो मुसलमानों पर अत्याचारों की बाढ़ आ जाएगी और देश में उनका जीना दूभर हो जायेगा। लेकिन क्या अभी तक पिछले ५-६ सालों में ऐसा कोई जुल्म ढाया गया है जिससे ये कहा जा सके की नरेंद्र मोदी सरकार मुस्लिम विरोधी सरकार है बल्कि इसके विपरीत यह साबित हुआ है की मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक बिल लाकर और उसे कानून बनाकर जो काम किया है वो तो उनकी सबसे ज्यादा समर्थक माने जाने वाली पार्टी ने भी नहीं किया तो फिर क्यों नरेंद्र मोदी सरकार को मुसलमानों का विरोधी कहा जा रहा था। 

 

यहाँ बात सिर्फ कमलेश तिवारी हत्याकाण्ड की नहीं है बल्कि हिन्दू बहुसंख्यकवाद की है। अगर नरेंद्र मोदी सरकार को हिन्दुओं का समर्थक माना जाता है तो फिर उनके ही राज में हिन्दुओं पर इतने संकटों के बादल क्यों गहरा रहे हैं। पिछले कुछ समय से लगातार देश के विभिन्न भागों में हिन्दुओं के मारे जाने की खबरें आ रही हैं। आखिर क्यों इन हत्याओं की पीछे की वजह और साजिश की गहराई से जाँच और कार्यवाही नहीं की जा रही है ?और ना ही ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये जा रहे हैं। 

 

अभी साल दो साल पहले ये देश हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी लेखक पत्रकार ,फिल्मी कलाकार और कुछ मशहूर हस्तियाँ को यहाँ असहिषुणता नजर आने लगा था और इस देश में रहने से उनके जीवन को बहुत बड़ा खतरा पैदा हो गया था किंतु अब जब हिन्दुओं के साथ इस तरह की घटनाएँ होती हैं तो आज तक किसी भी हिन्दू के लिए ये देश कभी भी असहिषुण नहीं हुआ.अगर बहुसंख्यक होकर भी हिन्दुओं के साथ इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं तो फिर कैसे नरेंद्र मोदी सरकार को एक हिन्दू समर्थक पार्टी का ख़िताब दिया जा सकता है?

 
 

एक प्रश्न यहॉं देश की विपक्षी पार्टी के उन नेताओं के ऊपर भी उठता है की जब भी किसी मुस्लिम या एस सी एस टी या कोई और कास्ट के साथ किसी भी घटना पर उस पीड़ित व्यक्ति के घर नेताओं की सहानुभूति की नौटंकी करने के लिए जो जमावड़ा लग जाता है वे सारे नेता अब कहा चले गए जो किसी एक ने भी वहाँ जाकर शोक व्यक्त नहीं किया। क्या कमलेश तिवारी इनकी नजर में भारतीय नहीं है या इसलिए  कि इस घटना से कोई राजनैतिक रोटियाँ नहीं सिक पायेंगी?

 

प्रधानमंत्री मोदी का देश की जनता के लिए एक ही वादा रहा है -सबका साथ सबका विकास। और इसके लिए उन्होंने देश के गरीब और अमीर हर तबके के वर्ग के लिए हिन्दू हो या मुसलमान सभी के विकास और उन्नति के लिए अवश्य ही बहुत सारे काम किये हैं ,जिसे भारत की जनता समझ भी रही है और इसी एक वजह से उनका समर्थन भी कर रही है किंतु सवाल ये है कि अगर भाजपा की सरकार और मोदीजी के रहते हुए हिंदुओं की इसी तरह हत्त्याए होती रहीं और उन्हें जड़ से खत्म करने के लिए इसी तरह षड्यंत्र रचे जाते रहे जाते रहे और वे लोग कामयाब भी होते रहे तो वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब हिन्दू हिंदुस्तान में ही अल्पसंख्यक हो जायेंगे।अंत में मै बस यही कहना चाहूँगी कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है हम सभी को इस भावना का सम्मान करना चाहिए।

धन्यवाद  

{ये लेखक के अपने विचार हैं }

Friday, October 18, 2019

दिल्ली की जानलेवा प्रदूषित आवोहवा

पर्यावरण प्रदूषण निवारक प्राधिकरण [इपका ]ने मंगलवार को दिल्ली -एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानि [गैप ]लागू कर दिया। दिल्ली सरकार ने पहले ही तीनो निगम ,डीडीए जैसे तमाम विभागों को पहले से ही इसकी जानकारी दे दी गई थी। पर्यावरण प्रदूषण निवारक प्राधिकरण के प्रमुख भूरेलाल ने बताया ,एनसीआर में डीजल जेनरेटर ,बिना जिग जैग तकनीक वाले ईट भट्टों ,होटल रेस्टोरेंट में कोयला व लकड़ी के चूल्हों पर रोक लगेगी। 

 
 
 

हवा की  गुणवत्ता

अक्तूबर के महीने में हर साल हवा की गुणवत्ता का स्तर इतना नीचे गिर जाता है कि साँस लेना भी दूभर हो जाता है पिछले सालों की तरह इस साल भी पिछले एक हफ्ते से दिल्ली की आबोहवा बद से बदतर हो गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के मुताबिक मंगलवार को दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक २७० अंक पर रहा ,जो खराब श्रेणी का है। 'सफर "का अनुमान है {केंद्र द्वारा संचालित संस्था }की आने वाले समय में ये और भी भयानक रूप लेगी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मंगलवार को प्रदूषण का स्तर इतना नीचे गिर जाने पर अधिकारियों को आड़े हाथों लिया । परन्तु सवाल यह उठता है की जब सारे दिशा -निर्देश पहले ही जारी कर दिए गए थे तो समय रहते उन सभी गतिविधियों पर रोक क्यों नहीं लगायी गयी। पिछले ५ सालों में केजरीवाल सरकार आड -इवन का खेल ,खेल रही है कि इससे दिल्ली का प्रदूषण कम होगा परन्तु पिछले साल सुप्रीम कोर्ट तक ने कहा की,आड -इवन से प्रदूषण को कम करने में कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। 

 
 
प्रदुषण पर लापरहवाही 

 प्रदूषण की वजह से दिल्ली में लगातर साँस और दमा के मरीजों की संख्या वर्ष दर वर्ष बढ़ती जा रही है लोगों की सेहत पर खराब हवा के प्रभाव की तुलना एक दिन में १५ से २० सिगरेट पीने से की जा सकती है। लेकिन सरकार इसके लिए कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रही है। दिल्ली में वायु की गुणवत्ता का खराब होने का ठीकरा सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा से आने वाले पराली {फसल काटने के बाद जमीन में जो जड़े खड़ी रह जाती हैं }के धुएँ के ऊपर फोड़ दिया जाता है। लेकिन केंद्र द्वारा संचालित संस्था ''सफर ''के आँकड़ो के मुताबिक दिल्ली की आबोहवा को प्रदूषित करने में पराली का योगदान सिर्फ ५ फीसदी है। जिसका मतलब ये हुआ की ९० %कारण स्थानीय है जिनका हल स्वयं दिल्ली सरकार को ही निकालना होगा। 

 
 
प्रदुषण पर प्रतिक्रिया 

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ गया है की अब यह रहने लायक नहीं बची है यह विशेष टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने की उन्होंने कहा कि दिल्ली में जिस तरह के हालात हो गए हैं उससे यह तो साफ है कि यह शहर अब काम करने और रहने लायक नहीं बचा है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मुझे शुरुआत में दिल्ली अच्छी लगी लेकिन अब ऐसा नहीं है। मै रिटायर होने के बाद दिल्ली में नहीं रहूँगा। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर चिंतित हाईकोर्ट ने कहा ,लगता है जैसे गैस चैम्बर में रह रहे हैं। 

 
 
ठोस कदम उठाने की ज़रूरत 

दिल्ली सरकार को दिल्ली की आबोहवा को कुछ दुरुस्त कदम उठाने की जरूरत है सिर्फ उठाने की ही नहीं उन्हें क्रियान्वित  करने की भी। दिल्ली के प्रदूषण में अहम योगदान बाहरी राज्यों से आने वाले करीब ४५ लाख गाड़ियों जिसमे सामान पहुंचाने वाले ट्रकों का है, क्योंकि ज्यादातर गाड़ियाँ डीज़ल और पैट्रोल से चलती हैं इसलिए बाहर से आने वाले हैवी वाहनों पर रोक लगना बहुत जरूरी है क्योंकि दिल्ली में बाहर से आने वाले वाहनो में पंजाब ,हरियाणा उत्तरप्रदेश के वाहनों की काफी संख्या है । 

{२ }दिल्ली के प्रदूषण में दूसरा बड़ा योगदान दिल्ली के उद्योग और लैंडफिल साईट का है.इसमें अकेले भलस्वा ,गाजीपुर और ओखला के लैंडफिल साईट से निकलने वाला धुआँ ,उड़ता कूड़ा -कचरा और कचरे से बिजली बनाने वाले कारखाने का काफ़ी बड़ा योगदान है 

३ ]दिल्ली की आबोहवा को जहरीला बनाने में पड़ोसी राज्यों से आने वाले धूल और धुयें का भी काफी योगदान है। हर साल दिल्ली में पराली या भूसे के जलने के कारण दिल्ली वालों को प्रदूषित हवा में साँस लेनी पड़ती है ये नजारा दिल्ली में हर साल देखने को मिलता है जब खरीफ की फ़सलें काटी जाती हैं और अवशेषों को जलाया जाता है ।प्रदूषण का एक और कारण है राजस्थान से आने वाली धूल भरी हवाएँ। 

इन दोनों ही समस्याओं का सरकार चाहे तो समाधान निकाल सकती है। मैने सुना है कि मिडिल ईस्ट में फ़सलों के बचे हुए अवशेषों की मांग है किसान इससे कुछ एक्स्ट्रा इनकम भी कर पाएंगे लेकिन सरकार ने इस पर भी रोक लगाई हुई है कुछ  ऊटपटाँग नियम बनाये हुए हैं ऐसे में सरकार का फर्ज है कि किसानों को हर संभव मदद करे और आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराये। सरकार और नेताओं ने मिलकर अरावली की की पहाडिओं को लगभग खत्म ही कर दिया है। वरना पहले राजस्थान से आने वाली धूल को अरावली की पहाड़ियाँ रोक लिया करती थीं। इसलिए अब सरकार को उस जगह पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए 

प्रदूषण का एक और सबसे बड़ा कारण है रिहाइशी इलाकों में लगातार चलने वाला कंस्ट्रक्शन कार्य और उस पर बरती जाने वाली लापरवाही। गली -मोहल्ले में सालों साल कहीं न कहीं भवन निर्माण व मैट्रो का कार्य ,सड़कों का निमार्ण आदि में खूब लापरवाही बरती जाती है सरकार को चाहिए की ऐसे अधिकारियों से जवाबदेही होनी चाहिए जिनके कार्यक्षेत्र में ये सब काम आते हैं 

पिछले ५ सालों में सड़कों की हालत बदतर हो चुकी है टूटी -फूटी और गड्ढो से भरी हुई सड़के पूरी दिल्ली में देखा जाना आम बात है निगमों में भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों की ही सरकार है परन्तु ऐसा लगता है की न तो किसी को दिल्ली की और न ही दिल्ली की आबोहवा की कोई फिक्र है ,बस सब अपने -अपने हित साधने में लगे हुए हैं। सबसे ज्यादा दुःख की बात तो ये है कि इस बार दिल्ली में केंद्र की भाजपा सरकार के सातों सीटों पर सांसद चुनकर आये हैं लेकिन फिर भी दिल्ली को उपेक्षा झेलनी पड़ रही है।

दीपावली के बाद

जैसा कि उम्मीद थी प्रदूषण का स्तर अपने सबसे उच्च स्तर वायु गुणवत्ता सूचकाँक ८०० -१००० ,३ नवम्बर २०१९ दिन रविवार ,पर पहुँच गया। दिल्ली के हालात इस वक्त बहुत खराब हैं ,धुआँ घरों के अंदर तक पहुँच गया है लोगों का दम घुट रहा है ,साँस लेने में तकलीफ हो रही है ।भीड़ भरे प्रदूषित चोराहों पर एयर प्यूरीफायर लगाने की पायलट परियोजना असफल हो गयी है ।  ऑड -इवन शुरू हो चुका है। कल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगाई है ,लेकिन नेता हैं कि नाटकबाजी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री तक ऑड -इवन के विरोध में आकर अपना चालान कटवा रहे हैं ,इस बात से ही आम आदमी समझ सकता है कि केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली के प्रदूषण को लेकर कितनी गम्भीर है।सरकारों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए क्योकि वे नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन कर रही हैं.   

 
 
निष्कर्ष 

केजरीवाल सरकार को अब जब चुनाव जैसे -जैसे नजदीक आ रहे हैं तो सब कुछ फ्री में बाँटकर लोगों को बेवकूफ बनाकर अपना हित साधना चाहते हैं पिछले ५ सालों में केजरीवाल सरकार को कुछ भी याद नहीं आया किन्तु जब प्रदूषण का स्तर इतना गिर गया है तो अब अचानक सड़को पर छिड़काव करवाया जा रहा है ,ओड -इवन लागू किया जा रहा है कंस्ट्रक्शन कार्यों में नियमों का उललंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जा रहा है कहीं -कहीं लोंगो को बहकाने के लिए सड़कें बनवायी जा रहीं हैं । पराली पर हायतौबा मचायी जा रही है। काश ,ये सारे कदम दिल्ली सरकार समय रहते उठाती तो शायद दिल्ली की और दिल्ली वालों की प्रदूषण की वजह से इतनी तकलीफें न उठानी पड़ती। और खासकर ऐसे मुख्यमंत्री ,जो खुद साँस की बीमारी से ग्रस्त हैंउनसे ऐसी उम्मीद न थी.  

{ये लेखक के अपने विचार हैं }         

Friday, October 11, 2019

राफेल -ख़त्म हुआ इन्तजार

राफेल -ख़त्म हुआ इन्तजार 

Fighter jet

भारत ने पहला राफेल प्राप्त किया 

८ अक्टूबर २०१९ ,मंगलवार को वायु सेना दिवस के मौके पर भारतीय वायुसेना को उसका बहुप्रतीक्षित पहला रफाल मिल गया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने फ्रांस के मेरिनेक एयरबेस पर औपचारिक रूप से राफेल विमान प्राप्त किया। उन्होंने इस प्रक्रिया  को पूरे विधि-विधान और पूजा -पाठ के साथ पूरा किया। रक्षामंत्री ने विमान पर ॐ का तिलक लगाया तथा नारियल और पुष्प अर्पित किये। विमान के पहियों के नीचे नीबू भी रखे गये.

भारत और फ्रांस के बीच राफेल डील  

इस मौके पर फ़्रांस के शीर्ष सैन्य अधिकारी तथा राफेल के विनिर्माता डसाल्ट एविएशन के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे. भारत ने करीब ५९ हजार करोड़ रूपये मूल्य पर ३६ राफेल लड़ाकू जेट विमान खरीदने के लिए सितम्बर २०१६ में फ़्रांस के साथ अंतर -सरकारी समझौता किया था,  जिसका ये पहला विमान था ४ विमान अगले साल मई तक मिलेंगे और बाकि उम्मीद है की ,वे भी तय समय सीमा के अंदर ही मिल जायेंगे । . 

रक्षा मंत्री की शस्त्र पूजा 

रक्षामंत्री ने कहा ,आज विजयदशमी है और वायुसेना दिवस भी है । आज का दिन प्रतीकात्मक है। इससे वायुसेना की शक्ति में वृद्धि होगी। हमारा ध्यान वायुसेना को समृद्ध करने और उसे बढ़ाने पर है।। उन्होंने कहा, मै फ़्रांस के सहयोग का शुक्रगुजार हूँ ।रक्षामंत्री पिछले कई सालों से विजयदशमी पर शस्त्र पूजा करते आ रहे है लेकिन इस बार ये पूजा उन्होंने विदेशी धरती पर की और वो भी राफेल की. इस बात से एक ये सन्देश भी देने की कोशिश की गयी है की हम दुनिया के किसी भी कोने में चले जाये किन्तु हमें अपनी संस्कृति को कभी नहीं भूलना चाहिए। पूजा के रक्षा मंत्री ने २५ मिनट की शोटी भी ली।  

राफेल का मतलब 

इसे फ़्रांसिसी भाषा में रफाल कहते हैं, इसका अर्थ होता है तूफान '.रफाल में मिटियर और स्काल्प मिसाइल लगीं हैं।,इससे भारतीय वायुसेना को अद्वितीय मारक क्षमता हासिल होगी राफेल के टेल नंबर आरबी -०१ का नाम भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इस रक्षा सौदे में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी।

राफेल की विशेषताएँ 

राफेल विमान की सबसे बड़ी खूबी है इसकी स्पीड। इसकी अधिकतम स्पीड २,१३० किमी /घंटा और मारक क्षमता   लगभग ३७००किमी तक है। ये विमान २४०००किलो वजन उठाकर ले जाने में सक्षम है।१५० किमी ०की बियोड विजुअल रेंज मिसाइल ,हवा से जमीन पर मार करने वाली स्कैल्प मिसाइल को यूज़ कर सकता है यह दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है ,जो भारतीय वायुसेना की पहली पसन्द है. राफेल अत्याधुनिक हथियारों से लैस विमान है जिसे हर तरह के मिशन पर भेजा जा सकता है। यह विमान ७० से ७५%हमेशा किसी भी ओपरेशन के लिए तैयार रहता है परमाणु हथियार भी ले जाने में सक्षम है और ५ मिनट के अंदर किसी भी मिशन के लिए रेडी हो जाता है,और अपनी सीमा में रहकर ही पड़ोसी देश की सीमा के कई किलोमीटर तक वार कर सकता है । अगर बालाकोट हमले के समय राफेल हमारे पास होता तो पायलट अभिनंदन को पाकिस्तानी सीमा के अंदर जाकर अटैक न करना पड़ता । 

राफेल को खरीदने का उद्देश्य 

आखिर भारत को इस तरह विमान की ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी. यहाँ एक बात को समझना बहुत ही जरूरी है की,भारत एक शान्तिप्रिय देश है और वह किसी भी देश के साथ युद्ध नहीं करना चाहता। भारत अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते सौहार्दपूर्ण व मित्रवत रखना चाहता है  लेकिन उसके पड़ोसी उतने शांति प्रिय नहीं हैं कि जी उसे हथियारों की जरूरत न पड़े। भारत इन विमानों को अपने दोनों बॉर्डर चीन और पाकिस्तान की सीमा पर [१]अम्बाला एयरबेस ,[२ ]हसिमरा बसे स्टेशन पर तैनात करेगा। जिससे उसकी सीमाएं सुरक्षित रह सके। 

भारतीय पॉलिटिक्स में हंगामा 

२०१९ के आम चुनावों में भी राफेल को विपक्ष ने एक जोरदार आवाज के साथ ,और चौकीदार चोर है कहकर एक बहुत बड़ा मुद्दा बनाया परन्तु कुछ खास काम नहीं आया.मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा सुप्रीम कोर्ट ने भी ३६ राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुए सौदे में अनियमितताओं के लिए सीबीआई जाँच की माँग करने वाली सभी याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा ,व्यक्तियों की यह अनुभूति ,कि सौदे में गड़बड़ी हुई है ,जाँच का आधार नहीं हो सकती। 

राफेल अफगानिस्तान और लीबिया में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर चुका है। फ्राँस को ७० के दशक में जब अपनी  वायुसेना को मजबूत करने के लिए इस तरह के आधुनिक विमानों की जरूरत महसूस हुई तब उसने कई देशों के साथ मिलकर राफेल विमानों का निर्माण शुरू किया लेकिन धीरे -धीरे सभी पीछे हट गए ,तब फ्राँस ने अपने अकेले दम पर राफेल लड़ाकू जेट विमानों का निर्माण किया। इसे भारतीय वायुसेना की माँग और जरूरत के के अनुसार फेरबदल भी किये गए हैं जब तक भारत पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जायेगा इसकी टेस्टिंग चलती रहेगी । 

धन्यवाद।   

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Tuesday, October 8, 2019

स्वच्छ भारत ,सुखी भारत।

 

Swachh bharat

ये प्रधानमंत्री मोदी का और पूरे भारत का बहुत बड़ा सपना है। 'स्वच्छ भारत अभियान ' की शुरुआत २ अक्टूबर २०१४ को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जयंती पर की गयी। महात्मा गाँधी की जयंती पर ही इस अभियान को इसलिए शुरू किया गया है क्योकि गाँधी जी ने ही सबसे पहले स्वच्छ भारत का सपना देखा था। इस अभियान को दो भागों में बाँटा गया है। एक स्वच्छ भारत अभियान ग्रामीण और दूसरा स्वच्छ भारत अभियान शहरी। इस अभियान का लोगो गांधीजी के चश्मे को बनाया गया है। और इस अभियान की एक टैग लाइन भी जारी की गयी है ,एक कदम स्वच्छता की ओर।

सन २०१९ में देश बापू की १५०वी जयंती मना रहा है और गांधीजी अपने चश्में से बने लोगो से हम सबको देख रहे हैं कि उनका स्वच्छ भारत का सपना कितना पूरा हुआ और कौन कितनी कोशिश कर रहा है भारत को स्वच्छ रखने की। हालांकि आजादी के बाद जितनी भी सरकारे आयी सभी ने अपने -अपने स्तर पर कुछ न कुछ कार्य किये हैं और सभी अभिनंदन के हकदार हैं लेकिन मोदी सरकार ने लोगों में सफाई के प्रति जनजागरण का काम किया है।   

इस अभियान के लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश की गयी है खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। गाँवो में शौचालयों का हर घर में निर्माण कराया गया है। और गाँव के बाहर सार्वजनिक शौचालयों को बनवाने के लिए पैसे सीधे गाँव प्रधान के पास पहुँचाया गया है इस प्रावधान से भ्र्ष्टाचार की गुंजाइश भी न के बराबर रह गयी है। गाँव में शौचालयों के बनने से महिलाओं से सम्बन्धित बहुत बड़ी समस्या का समाधान हो गया है उनके स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ये विशेष महत्व रखता है। 

शहरों में भी सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया गया है। पहले के वक्त में लोग इधर -उधर परेशान होकर घूमते फिरते थे खासकर महिलाओं को घर से बाहर काफी परेशानिओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन अब जगह -जगह सुलभ शौचालयों का निर्माण कराया गया है। लेकिन अभी भी शौचालयों की सफाई और पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। इसलिए अभी हमें इन समस्याओ के समाधानों पर भी ध्यान देना होगा जिससे लोगों के स्वास्थ्यय का ध्यान रखा जा सके। क्योकि स्वच्छ भारत का उद्देश्य ही स्वस्थ्य भारत है। 

 

हमारे देश में लोगो को गली -मोहल्लों को साफ रखने की आदतों में भी सुधार करना होगा। सड़कें बनाने का काम तो सरकार का है किन्तु उसे स्वच्छ रखने का कार्य तो हम सभी को मिलकर करना होगा। लोगों को गलियों में कूड़े ऐसे ही फ़ेंक देने की आदतों में सुधार लाना होगा गलियों में पान खाकर दीवारों पर थूकना बंद करना होगा और हमें सफाई के प्रति जागरूक होना होगा क्योकि ये काम जन सामान्य का काम है। गंदगी दूर कर देश सेवा करना हमारा कर्तव्य है।

ज्यादातर देखने में आता है कि जब भी हम कहीं बाहर घूमने किसी हिल स्टेशन या बीच पर जाते हैं तो खाने -पीने के सामान के रैपर बॉटल्स कप्स आदि ऐसे ही फ़ेंक देते हैं जिससे वहाँ की ख़ूबसूरती तो खराब होती ही है बल्कि उससे ज्यादा प्रकृति को कितना नुकसान पहुँचा रहे हैं इसका अंदाजा भी आप लोगों को उस वक्त नहीं लग पाता है। आप खूबसूरत जगह देखने जाते हो और उस जगह को गन्दा करके लौटते हो हो तो इस तरह तो पूरे भारत में कोई भी स्थान स्वच्छ बचेगा ही नहीं। हमें अपनी इन आदतों को भी छोड़ना होगा। 

 

कचरे के उपुयक्त प्रबंधन के लिए सरकार ने कई कदम उठाये हैं उसमे कचरे को तीन हिस्सों में बांटना शामिल है -१ बायोडीग्रेवाल २ घरेलू कचरा और ३ सूखा कचरा। जगह -जगह सार्वजनिक स्थानों पर डस्टबिन रखना ,प्लास्टिक की बोतल वगैरह अलग से इकट्ठा करना, कचरा बीनने वालों को पेमेंट करना शामिल है। लोगों में व्यवहारिक परिवर्तन लाने के प्रयास करना आदि। 

क्या सफाई सिर्फ सफाईकर्मियों का ही जिम्मा है हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं। हम सिर्फ इसे सफाई कर्मचारियों के भरोसे कैसे छोड़ सकते हैं। हमें अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा बेशक पुरानी आदतों को छोड़ने में थोड़ा वक्त लगता है परन्तु अपनी भलाई के लिए और विश्व में अपने देश की स्वच्छ छवि बनाने के लिए हमें ऐसा अवश्य ही करना होगा। हम सभी भारतीयों को सफाई को एक नियम नहीं बल्कि अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेना चाहिए जब हम बदलेंगे तभी तो देश बदलेगा।

[ये लेखक के अपने विचार हैं ]  

Saturday, September 28, 2019

शक्ति की उपासना

This is Indian goddess

शारदीय नवरात्रि {नवरात्रि २०१९ }२९ सितम्बर दिन रविवार से शुरू हो रहे हैं नवरात्रि के साथ ही इस अक्तुबर महीने के त्यौहारों की शुरुआत  हो जाएगी। आदिशक्ति दुर्गा की पूजा ,आराधना ,साधना और उनमें समर्पण का पर्व नवरात्रे कहलाता है जिसमें माँ दुर्गा के ९ रूपों की ९ दिनों तक पूजा -अर्चना की जाती है। देवी माँ के ये ९ दिन बहुत ही सुखद फलदायी होते हैं। पुराणों में मान्यता है की प्रभु श्री राम ने लंका विजय के १० दिन पूर्व इन्हीं नवरात्रों में माता भगवती की पूजा अर्चना की थी। इन ९ दिनों में माँ दुर्गा के ९ रूपों की पूजा की जाती है.

नवरात्रि हिन्दुओं का एक मुख्य और जीवन को सात्विकता और ऊर्जा से भरने वाला त्यौहार है नवरात्रि वर्ष में चार बार आते हैं। पौष ,चैत्र ,आषाढ़ ,आश्विन ,प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि में तीन देवियों दुर्गा ,महालक्ष्मी और महासरस्वती माताओं के ९ रूपों की आराधना की जाती है हर दिन अलग -अलग रंग के परिधान ,अलग -अलग भोग लगाये जाते हैं। । 

शारदीय नवरात्रि को महानवरात्रि भी कहते हैं। ये नवरात्रि शरद माह में आते हैं ,इसलिए इन्हें शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। इसी नवरात्रि में विभिन्न स्थानों पर माँ दुर्गा की सुन्दर -सुन्दर प्रतिमा बनाकर विराजित की जाती हैं,तथा उनका विधिपूर्वक पूजन किया जाता है. रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है। भारत में प्राचीन काल से ही हवन ,यज्ञ आदि किये जाते रहे हैं हमारे ऋषि -मुनियों ने दिन की अपेक्षा रात्रि को ज्यादा महत्वपूर्ण माना है ,तभी तो हमारे हिन्दू धर्म में दीपावली ,होलिका दहन ,शिवरात्रि और नवरात्रि आदि उत्सवों को रात्रि में ही मनाया जाता है। गाँवों में आज भी हवन आदि रात्रि में ही किये जाते हैं.लेकिन आजकल शहरों में लोग दिन में ही पूजा -पाठ करा लेते हैं। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध ख़त्म हो जाते हैं मंदिरों में घंटे और शंख कीआवाज के कम्पन से दूर -दूर तक वातावरण कीटाणुओं से मुक्त हो जाता है. हवन और यज्ञ से जो धुआँ निकलता है उससे भी वातावरण शुद्ध हो जाता है।

 नवरात्रि उत्सव के साथ मौसम में भी परिवर्तन शुरू हो जाता है शरद ऋतू का आगमन हो जाता है। नवरात्रि का सिर्फ धर्म और आध्यात्म की दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है ऋतु बदलने के साथ बहुत से रोगों का भी आगमन हो जाता है जिससे हम शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। व्रत रखकर मनुष्य अपने शरीर को शुद्ध करते हैं और ऊर्जा प्राप्त करते हैं जिससे बीमारियों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है। स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मन का निवास होता है और स्वस्थ्य मन में ही माँ का निवास होता है।
 
                                                       या देवी सर्वभूतेषु
                                                       शक्ति-रूपेण संस्थिता।
                                                      नमस्-तस्यै नमस्-तस्यै,
                                                      नमस्-तस्यै नमो नमः

 

नवरात्रि में माता शक्ति के रूप में ही पूजी जाती है. कोई भी मनुष्य चाहे कितनी भी शक्तियाँ अर्जित कर ले ,चाहे  वरदान के रूप में या अपनी पूजा पाठ से। अगर उन शक्तियों का गलत इस्तेमाल होगा तो वह तुम्हारे कभी भी उस वक्त काम नहीं आएँगी जब तुम्हें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी जैसे रावण को उसके आखिरी समय में या फिर कंस के आखिरी वक्त में। माता शक्ति उसी का साथ देती हैं जो सच्चाई के रास्ते पर चलता है।    

नवरात्रि भारत के कई राज्यों में अलग -अलग तरीके से मनायी जाती है। गुजरात में नवरात्रि का त्यौहार बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। गुजरात का डांडिया और गरबा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। गुजराती लोगों का ये सबसे बड़ा त्यौहार है। पश्चिमी बंगाल में दुर्गा-पूजा बंगालियों का सबसे बड़ा त्यौहार है बंगाली माँ काली की पूजा विशेष रूप से करते हैं.बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान किये जाने वाला धनुची नृत्य सबसे खास है धनुची एक प्रकार का मिटटी से बना बर्तन होता है जिसमें नारियल के छिलके जलाकर माँ की आरती की जाती है। लोग दोनों हाथों में धनुची लेकर बैलैंस बनाते हुए नृत्य करते हैं। बंगाली महिलाएं दुर्गा पूजा के दौरान लालपाढ़ वाली सफेद साड़ी पहनती हैं 

दुर्गा पूजा के १०वे दिन दशहरा यानि विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है.जैसे माँ दुर्गा ने अत्यंत ही शक्तिशाली राक्षश महिषासुर को ख़त्म करके किया था । इसी तरह आज के समाज में भी बहुत से राक्षस खुलेआम हम लोगों के बीच घूम रहे हैं बस जरूरत है तो उन्हें उखाड़ फेंकने की।और एक नई शक्ति का संचार करने की।   जय माता की। 

{ये लेखक के अपने विचार हैं }  

   

    

राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला आने के बाद की स्थिति

फैसले की उत्सुकता     चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ९ नवम्बर २०१९ की सुबह लगभग १०:३० पर जब राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद पर पाँच जजों की ...