Friday, October 18, 2019

दिल्ली की जानलेवा प्रदूषित आवोहवा

पर्यावरण प्रदूषण निवारक प्राधिकरण [इपका ]ने मंगलवार को दिल्ली -एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान यानि [गैप ]लागू कर दिया। दिल्ली सरकार ने पहले ही तीनो निगम ,डीडीए जैसे तमाम विभागों को पहले से ही इसकी जानकारी दे दी गई थी। पर्यावरण प्रदूषण निवारक प्राधिकरण के प्रमुख भूरेलाल ने बताया ,एनसीआर में डीजल जेनरेटर ,बिना जिग जैग तकनीक वाले ईट भट्टों ,होटल रेस्टोरेंट में कोयला व लकड़ी के चूल्हों पर रोक लगेगी। 

 
 
 

हवा की  गुणवत्ता

अक्तूबर के महीने में हर साल हवा की गुणवत्ता का स्तर इतना नीचे गिर जाता है कि साँस लेना भी दूभर हो जाता है पिछले सालों की तरह इस साल भी पिछले एक हफ्ते से दिल्ली की आबोहवा बद से बदतर हो गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के मुताबिक मंगलवार को दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक २७० अंक पर रहा ,जो खराब श्रेणी का है। 'सफर "का अनुमान है {केंद्र द्वारा संचालित संस्था }की आने वाले समय में ये और भी भयानक रूप लेगी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मंगलवार को प्रदूषण का स्तर इतना नीचे गिर जाने पर अधिकारियों को आड़े हाथों लिया । परन्तु सवाल यह उठता है की जब सारे दिशा -निर्देश पहले ही जारी कर दिए गए थे तो समय रहते उन सभी गतिविधियों पर रोक क्यों नहीं लगायी गयी। पिछले ५ सालों में केजरीवाल सरकार आड -इवन का खेल ,खेल रही है कि इससे दिल्ली का प्रदूषण कम होगा परन्तु पिछले साल सुप्रीम कोर्ट तक ने कहा की,आड -इवन से प्रदूषण को कम करने में कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। 

 
 
प्रदुषण पर लापरहवाही 

 प्रदूषण की वजह से दिल्ली में लगातर साँस और दमा के मरीजों की संख्या वर्ष दर वर्ष बढ़ती जा रही है लोगों की सेहत पर खराब हवा के प्रभाव की तुलना एक दिन में १५ से २० सिगरेट पीने से की जा सकती है। लेकिन सरकार इसके लिए कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रही है। दिल्ली में वायु की गुणवत्ता का खराब होने का ठीकरा सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा से आने वाले पराली {फसल काटने के बाद जमीन में जो जड़े खड़ी रह जाती हैं }के धुएँ के ऊपर फोड़ दिया जाता है। लेकिन केंद्र द्वारा संचालित संस्था ''सफर ''के आँकड़ो के मुताबिक दिल्ली की आबोहवा को प्रदूषित करने में पराली का योगदान सिर्फ ५ फीसदी है। जिसका मतलब ये हुआ की ९० %कारण स्थानीय है जिनका हल स्वयं दिल्ली सरकार को ही निकालना होगा। 

 
 
प्रदुषण पर प्रतिक्रिया 

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ गया है की अब यह रहने लायक नहीं बची है यह विशेष टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने की उन्होंने कहा कि दिल्ली में जिस तरह के हालात हो गए हैं उससे यह तो साफ है कि यह शहर अब काम करने और रहने लायक नहीं बचा है। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि मुझे शुरुआत में दिल्ली अच्छी लगी लेकिन अब ऐसा नहीं है। मै रिटायर होने के बाद दिल्ली में नहीं रहूँगा। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर चिंतित हाईकोर्ट ने कहा ,लगता है जैसे गैस चैम्बर में रह रहे हैं। 

 
 
ठोस कदम उठाने की ज़रूरत 

दिल्ली सरकार को दिल्ली की आबोहवा को कुछ दुरुस्त कदम उठाने की जरूरत है सिर्फ उठाने की ही नहीं उन्हें क्रियान्वित  करने की भी। दिल्ली के प्रदूषण में अहम योगदान बाहरी राज्यों से आने वाले करीब ४५ लाख गाड़ियों जिसमे सामान पहुंचाने वाले ट्रकों का है, क्योंकि ज्यादातर गाड़ियाँ डीज़ल और पैट्रोल से चलती हैं इसलिए बाहर से आने वाले हैवी वाहनों पर रोक लगना बहुत जरूरी है क्योंकि दिल्ली में बाहर से आने वाले वाहनो में पंजाब ,हरियाणा उत्तरप्रदेश के वाहनों की काफी संख्या है । 

{२ }दिल्ली के प्रदूषण में दूसरा बड़ा योगदान दिल्ली के उद्योग और लैंडफिल साईट का है.इसमें अकेले भलस्वा ,गाजीपुर और ओखला के लैंडफिल साईट से निकलने वाला धुआँ ,उड़ता कूड़ा -कचरा और कचरे से बिजली बनाने वाले कारखाने का काफ़ी बड़ा योगदान है 

३ ]दिल्ली की आबोहवा को जहरीला बनाने में पड़ोसी राज्यों से आने वाले धूल और धुयें का भी काफी योगदान है। हर साल दिल्ली में पराली या भूसे के जलने के कारण दिल्ली वालों को प्रदूषित हवा में साँस लेनी पड़ती है ये नजारा दिल्ली में हर साल देखने को मिलता है जब खरीफ की फ़सलें काटी जाती हैं और अवशेषों को जलाया जाता है ।प्रदूषण का एक और कारण है राजस्थान से आने वाली धूल भरी हवाएँ। 

इन दोनों ही समस्याओं का सरकार चाहे तो समाधान निकाल सकती है। मैने सुना है कि मिडिल ईस्ट में फ़सलों के बचे हुए अवशेषों की मांग है किसान इससे कुछ एक्स्ट्रा इनकम भी कर पाएंगे लेकिन सरकार ने इस पर भी रोक लगाई हुई है कुछ  ऊटपटाँग नियम बनाये हुए हैं ऐसे में सरकार का फर्ज है कि किसानों को हर संभव मदद करे और आधुनिक तकनीक उपलब्ध कराये। सरकार और नेताओं ने मिलकर अरावली की की पहाडिओं को लगभग खत्म ही कर दिया है। वरना पहले राजस्थान से आने वाली धूल को अरावली की पहाड़ियाँ रोक लिया करती थीं। इसलिए अब सरकार को उस जगह पर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए 

प्रदूषण का एक और सबसे बड़ा कारण है रिहाइशी इलाकों में लगातार चलने वाला कंस्ट्रक्शन कार्य और उस पर बरती जाने वाली लापरवाही। गली -मोहल्ले में सालों साल कहीं न कहीं भवन निर्माण व मैट्रो का कार्य ,सड़कों का निमार्ण आदि में खूब लापरवाही बरती जाती है सरकार को चाहिए की ऐसे अधिकारियों से जवाबदेही होनी चाहिए जिनके कार्यक्षेत्र में ये सब काम आते हैं 

पिछले ५ सालों में सड़कों की हालत बदतर हो चुकी है टूटी -फूटी और गड्ढो से भरी हुई सड़के पूरी दिल्ली में देखा जाना आम बात है निगमों में भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों की ही सरकार है परन्तु ऐसा लगता है की न तो किसी को दिल्ली की और न ही दिल्ली की आबोहवा की कोई फिक्र है ,बस सब अपने -अपने हित साधने में लगे हुए हैं। सबसे ज्यादा दुःख की बात तो ये है कि इस बार दिल्ली में केंद्र की भाजपा सरकार के सातों सीटों पर सांसद चुनकर आये हैं लेकिन फिर भी दिल्ली को उपेक्षा झेलनी पड़ रही है।

दीपावली के बाद

जैसा कि उम्मीद थी प्रदूषण का स्तर अपने सबसे उच्च स्तर वायु गुणवत्ता सूचकाँक ८०० -१००० ,३ नवम्बर २०१९ दिन रविवार ,पर पहुँच गया। दिल्ली के हालात इस वक्त बहुत खराब हैं ,धुआँ घरों के अंदर तक पहुँच गया है लोगों का दम घुट रहा है ,साँस लेने में तकलीफ हो रही है ।भीड़ भरे प्रदूषित चोराहों पर एयर प्यूरीफायर लगाने की पायलट परियोजना असफल हो गयी है ।  ऑड -इवन शुरू हो चुका है। कल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार लगाई है ,लेकिन नेता हैं कि नाटकबाजी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री तक ऑड -इवन के विरोध में आकर अपना चालान कटवा रहे हैं ,इस बात से ही आम आदमी समझ सकता है कि केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली के प्रदूषण को लेकर कितनी गम्भीर है।सरकारों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए क्योकि वे नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन कर रही हैं.   

 
 
निष्कर्ष 

केजरीवाल सरकार को अब जब चुनाव जैसे -जैसे नजदीक आ रहे हैं तो सब कुछ फ्री में बाँटकर लोगों को बेवकूफ बनाकर अपना हित साधना चाहते हैं पिछले ५ सालों में केजरीवाल सरकार को कुछ भी याद नहीं आया किन्तु जब प्रदूषण का स्तर इतना गिर गया है तो अब अचानक सड़को पर छिड़काव करवाया जा रहा है ,ओड -इवन लागू किया जा रहा है कंस्ट्रक्शन कार्यों में नियमों का उललंघन करने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जा रहा है कहीं -कहीं लोंगो को बहकाने के लिए सड़कें बनवायी जा रहीं हैं । पराली पर हायतौबा मचायी जा रही है। काश ,ये सारे कदम दिल्ली सरकार समय रहते उठाती तो शायद दिल्ली की और दिल्ली वालों की प्रदूषण की वजह से इतनी तकलीफें न उठानी पड़ती। और खासकर ऐसे मुख्यमंत्री ,जो खुद साँस की बीमारी से ग्रस्त हैंउनसे ऐसी उम्मीद न थी.  

{ये लेखक के अपने विचार हैं }         

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