Monday, September 16, 2019

हिंदी राष्ट्र की पहचान

 

 


 

 

 किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और  संस्कृति से होती है।  दुनिया में प्रत्येक  देश की अपनी अलग भाषा अलग संस्कृति होती है ,  कोई भी देश तब तक अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता जब तक उसने अपनी मातृभाषा को अधिकारिक भाषा का दर्जा न दिया हो।हिंदी हमारी मातृभाषा है हमें इस पर गर्व होना चाहिये लेकिन दुविधा इस बात की है की हम अन्य देशों में हिंदी की दमदार मौजूदगी से खुश हों या अपने ही देश में उपेक्षा झेलने से दुःखी। हम बेशक बहुत सी भाषायें सीख सकते हैं परन्तु जिस भाषा को मनुष्य बचपन से लेकर बड़े होने तक सुनता है ,समझता है।,सोचता है और बोलता है वही भाषा उसकी रग -रग में समा जाती है। और यदि कोई देश अपनी मूल भाषा छोड़कर आधिकारिक कार्य किसी दूसरी भाषा में करता है तो लोगों की योग्यता का शत -प्रतिशत  उपयोग नहीं हो पाता। आज भारत में लोगों की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि ६०% लोग हिन्दीभाषी हैं और आधिकारिक कार्य ज्यादातर अंग्रेजी में ही होते हैं , सरकारी संस्थानों को छोड़ दिया जाय तो स्तिथि कमोबेश यही है। 

संवैधानिक राजभाषा का दर्जा 

१४ सितम्बर १९४९ को हमारी देवनागरी लिपि हिंदी को संविधान के द्वारा आधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया हमारे देश में कदम -कदम पर बोली बदल जाती हैं । हमारे देश में विभिन्न बोलिओं और संस्कृतियों  का समावेश है। इसलिए जब संविधान सभा को राजभाषा का निर्णय  करना था तो मतभेद तो संभव थे ही ,लेकिन सारी बातों पर विचार करने के बाद सविंधान निर्माताओ ने सर्वसम्मति से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया। 

हिंदी भाषा का प्रसार 

दुनियाभर में लगभग ६५०० भाषाएँ बोली या पढ़ी -लिखी जाती हैं। भाषाओं के इस मेले में अपनी हिंदी वैश्विक पहचान बना रही है आज आप दुनिया के किसी भी कोने में चले जायें वहाँ आपको हिंदी बोलने और समझने वाले जरूर मिल जायेंगे।अपनी ही मातृभाषा को लेकर हमलोग असमंजस में रहते थे कि आखिर हर जगह अंग्रेजी की मौजूदगी से हमारी मातृभाषा का प्रचार -प्रसार कैसे होगा?हालांकि हमेशा ही आवाज उठती रही है की सरकारी दफ्तरों ,कार्यालयों , बैंको आदि में अंग्रेजी के बजाय हिंदी में काम किया जाय। अंग्रेज तो देश छोड़कर चले गए परन्तु आज ७० साल बाद भी हमने अंग्रेजी को अपने सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों से विदा नहीं किया। १९९७ में हुए एक सर्वे में पाया गया कि भारत में ६६फीसदी लोग हिंदी बोलते हैं ,जबकि ७७ %इसे समझ लेते हैं। १८०५ में लल्लूलाल द्वारा लिखी गयी पुस्तक 'प्रेमसागर' को हिंदी की पहली किताब माना जाता है। इसका प्रकाशन  फोर्टविलियम कोलकाता ने किया था। सन १९०० में सरस्वती में प्रकाशित  किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी 'इंदुमती' को पहली हिंदी कहानी माना जाता है हिंदी में उच्चतर शोध के लिए भारत सरकार ने १९६३ में केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना की। देश भर में इसके आठ केंद्र हैं । हिंदी भाषा के प्रचार  और प्रसार में हिंदी फिल्मों का भी बहुत बड़ा योगदान है। ये हिंदी भाषा देशों और अलग संस्कृति  के लोगो को एक दूसरे से जोड़ने का कार्य कर रही है जिस तरह बहता पानी अपना रास्ता खुद बना लेता है ठीक उसी प्रकार भाषा भी सांस्कृतिक ,राजनितिक और व्यवसायिक स्तर पर धीरे -धीरे अपना एक मुकाम हांसिल कर लेती है। 

तकनीकी क्रांति 

इस क्रांति के माध्यम से हिंदी की ऑनलाइन सामग्री से  छोटे शहरों और कस्बो के बच्चों को  पढ़ाई तथा रोजगार सम्बंधित चीजों में बहुत मदद मिल रही है। आज बाजार में स्मार्ट फ़ोन के जरिए शिक्षा व रोजगार से सम्बंधित बहुत से लर्निंग ऐप    आ चुके हैं जिससे बच्चों और युवाओं की भाषा से सम्बंधित परेशानी लगभग दूर हो चुकी है  इ-कामर्स के क्षेत्र में भी हिंदी में एप लॉन्च हो चुके हैं डिस्टेंस एजुकेशन के विद्यार्थी भी अब स्मार्ट क्लासेस के माध्यम से हिंदी या अन्य            भाषाओं में पढ़ाई कर रहे हैं। 

विश्व पटल पर हिंदी 

२३ सितंबर २०१७ यूएन  में विदेशमंत्री  सुषमा स्वराज ने अपने भाषण में कहा था, हिंदी पूरे विश्व में बोली और समझी जाती है तभी तो प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका इंग्लैण्ड ,फ्रांस आदि देशों में अपने भाषण हिंदी में बोलते हैं। दुनियाँ में भारत ही इकलौता देश नहीं है जो हिंदी को अपनी ऑफिसियल भाषा बनाना चाहता है,फिजी मॉरीशस आदि देशों में पहले से ही हिंदी ऑफिसियल भाषा है। जबकि भारत में हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषायें ऑफिशियल हैं हिंदी विश्व के ३० से अधिक देशों में पढ़ी -पढ़ाई जाती है। 

 संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा का दर्जा 

सयुंक्तराष्ट्र में भी भारत हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए लगातार प्रयासरत है हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने में वहाँ की प्रक्रिया आड़े आ रही है  जिसके तहत यू -एन  के १२९ देशो को खर्च राशि वहन करनी होती है जिसके लिए हम आर्थिक दृष्टि से कमजोर देशों को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए  हमें संयुक्तराष्ट्र  में दो -तिहाई बहुमत हासिल करना होगा और उम्मीद है की हम जल्दी ही सदस्य देशों को इसके लिए राजी कर लेंगे। 

एक भाषा एक देश 

आज हिंदी दिवस पर गृहमंत्री अमितशाह के बयान से देश में बवाल मच गया,''भाषा लोगों को जोड़ने का काम करती है ,जो देश अपनी भाषा नहीं बचा सकता वो अपनी संस्कृति भी संरक्षित नहीं रख सकता।मै मानता हूँ कि हिंदी को बल देना ,प्रचारित करना ,प्रसारित करना ,संसोधित करना ,उसकी व्याकरण का शुद्धिकरण करना ,इसके साहित्य को नए युग में ले जाना चाहे वो गद्य हो या पद्य हमारा दायित्व है। " 

अंत में मै यही कहना चाहूँगी कि हम चाहे कितनी भी भाषा सीख लें परन्तु हमें अपनी मातृभाषा का हमेशा सम्मान करना चाहिए और उम्मीद करती हूँ , कि आने वाले वक़्त में हिंदी इतनी ऊपर उठ जाएगी कि हमें हिंदी दिवस मनाने की जरूरत महसूस नहीं होगी और  हम रोज ही हिंदी दिवस मनाएंगे। 

(यह लेखिका के अपने विचार हैं )

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