इसरो का सबसे ताकतवर रॉकेट जीएसएलवी - ३, २२ जुलाई २०१९ को करोड़ों हिन्दुस्तानियों का सपना लेकर उड़ा था। दशकों की तैयारी में अंतिम चरण की ४८ दिन की यह अनदेखी यात्रा बहुत महत्वपूर्ण थी। ये एक अहम पड़ाव था और रत्ती भर चूक की कोई गुंजाइश नहीं थी।परन्तु फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना किसी भी भारतीय ने सपने में भी नहीं की थी।
लैंडर का प्रोग्राम
शनिवार ७ सितम्बर सुबह १:३० से २:३० के बीच लैंडर विक्रम को चाँद की सतह पर उतरना था। १:४३ बजे पर लैंडर विक्रम की गति कम की गयी और यहीं से लैंडिंग के सबसे मुश्किल १५ मिनट शुरू हुए। १:४९ बजे चाँद से लैंडर केवल १२ किलोमीटर दूर था। १:५० बजे लैंडर महज २ किलोमीटर दूर था। १:५३ बजे तक सब कुछ सही चल रहा था और सभी वैज्ञानिक बीच बीच में ताली बजा कर अपनी खुशी भी व्यक्त कर रहे थे। और ठीक इसी वकत लैंडर अपना रास्ता भटक गया और थोड़ी देर बाद १:५४ पर लैंडर विक्रम से वैज्ञानिकों का संपर्क टूट गया। और सारे हॉल में ख़ामोशी छा गयी। थोड़ी देर तक वैज्ञानिक लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश करते रहे। वे इस इंतज़ार में रहे की विक्रम का सिस्टम अपने आप ऑन हो जाएगा। यह हुआ जब लैंडर चाँद से २.१ किलोमीटर दूरी पर था। थोड़ी देर में इसरो चीफ के. शिवन प्रधामंत्री मोदी के पास गए और उन्हें इस रुकावट के बारे में बताया। प्रधानमंत्री जो उस वक्त चंद्रयान - २ मिशन का लाइव टेलीकास्ट इसरो के बेंगलुरु स्तिथ मुख्यालय में देश भर से आए ७० बच्चों के साथ देख रहे थे। योजना के मुताबिक लैंडर विक्रम को चन्द्रमा की सतह पर उतरने के बाद वहाँ के वतावरण की जानकारी देनी थी।
प्रोग्राम में बाधा
लैंडर विक्रम का संपर्क टूटने की वजह से जो जानकारी हमे प्रज्ञान रोवर के द्वारा मिलनी थी अब वो नहीं मिल पाएगी। हालाँकि जो हमारा ऑर्बिटर चन्द्रमा की कक्षा में अभी भी चक्कर लगा रहा है उसके द्वारा ८ सितम्बर को लैंडर विक्रम की थर्मल इमेज भेजी गयी हैं। और वैज्ञानिकों द्वारा कहा गया है की विक्रम लैंडर पूरी तरह सुरक्षित है और उसमे कोई टूट फूट नहीं हुई है। इस बारे में और अधिक जानकारी आनेवाले टाइम में पता लगेगी की विक्रम से हमारा सम्पर्क हो पाएगा या नहीं।
वैज्ञानिकों का उत्साह वर्जन
प्रधानमंत्री मोदी ने वैज्ञानिकों को इस चंद्रयान - २ के मिशन की सफलता पर बधाई दी और कहा जीवन में उतार - चढ़ाव आते रहते हैं इसलिए हमे रिजल्ट की परवाह किए बगैरह आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमे आपके इस उपलब्धि पर गर्व है। और जो थोड़ी बहुत कमी रह गयी है उसे भी हम जल्द ही हांसिल कर लेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा भारत आज आप सभी की वजह से अंतरिक्ष के क्षेत्र में बहुत बड़ी बड़ी उपलभब्दियाँ हांसिल कर पाया है। ये सब आप लोगों की कठिन मेहनत और लगन का ही परिणाम है। प्रधानमंत्री ने इसरो चीफ के. शिवन को गले लगया और शाबाशी दी।
उम्मीद कायम
अंतिम क्षाणो में चाँद पर उतरने की देश की उम्मीदों को बहुत बड़ा झटका लगा है परन्तु उम्मीदें अभी भी कायम हैं क्योंकि हमारा आर्बिटर अभी भी अंतरिक्ष में चाँद के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है वैज्ञानिक आगे के आँकड़ो का विश्लेषण कर रहे हैं। जिस तरह चंद्रयान-1 ने चाँद पर पानी की खोज की थी ठीक उसी तरह चन्द्रयान -२ भी चाँद के बारे में दुनियाँ को और कई नई जानकारियॉ देगा जिससे आने वाले वक्त में मनुष्य को चाँद की सतह पर उतारने में और वहाँ से वापिस लाने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी। चंद्रयान -२ का आर्बिटर ७ साल तक काम करता रहेगा। ऑर्बिटर में लगे ८ पेलोड चन्द्रमा की सतह पर होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी देंगे। और ये उम्मीद अगले १४ दिनों तक बनी रहेगी क्योंकि पृथ्वी का एक दिन चन्द्रमा के चौदह दिनों के बराबर है जिसके चलते चौदह दिन तक वहाँ रोशनी बनी रहेगी। क्योकि विक्रम लैंडर पर सोलर पैनल लगा है। सोलर एक्सरे मॉनिटर आर्बिटर में है जो चाँद की सतह से टकराकर आने वाले सौर विकिरण की तीव्रता की जानकारी देगा। दो ताकतवर कैमरे आर्बिटर में लगे हैं -हाई रिज़ॉल्युशन कैमरा {ओ एच् आर सी }और टेरेन मैपिंग कैमरा -२ {टीएमसी -२ }दोनों की मदद से चाँद की सतह का थ्री डी नक्शा तैयार किया जायेगा। धातुओं का अध्ययन -ऑर्बिटर में मौजूद सॉफ्ट एक्सरे इसपेक्ट्रोमीटर चाँद मौजूद मैग्निशियम ,एलुमिनियम और हीलियम आदि धातुओं के बारे में पता लगा सकेगा। वहीं इसमें लगा ड्यूल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार चाँद के ध्रुवीय क्षेत्र में मौजूद पानी या बर्फ के बारे में भी बतायेगा।
भारत का महत्वकांशी मिशन
चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला भारत पहला देश है। इससे पहले अमेरिका ,चीन ,रूस ने चाँद के उत्तरी ध्रुव पर लैंडिग की है और कामयाब भी रहे हैं लेकिन इसी वर्ष ३ जनवरी २०१९ चीन ने चाँद के सुदूर पूर्व में चांग ई -४ चंद्रयान उतारकर एक विशिष्ट उपलब्धि हासिल की है। चंद्रयान -२ भारत का बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन रहा है। चंद्रयान -२ चाँद पर शोध का भारत का दूसरा और उसकी सतह पर उतरने का पहला प्रयास है। इस अभियान की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। यह अभियान हमे दुनिया की सबसे बड़ी और विकसित महाशक्तियों के बराबर खड़ा कर रहा है। चंद्रयान -२ अभियान ने दुनियाँ में भारत का चन्द्रमा के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र के बारे में जानकारियॉ जुटाना काफी अहम है। प्रश्न यह थे कि क्या चन्द्रमा का दक्षिणी हिस्सा उत्तरी ध्रुव जैसा ही है ? यहाँ का मौसम कैसा है ?यहाँ किस तरह के खनिज हैं ?और सबसे जरूरी कि क्या वहाँ पानी के भण्डार हैं ?यहाँ पानी का मिलना सिर्फ जीवन के लिए ही नहीं अपितु इससे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अलग -अलग करके ईंधन भी बनाया जा सकता है।
विश्व में देश की साख बनी
No comments:
Post a Comment